MP News: मध्य प्रदेश में नलकूप के लिए नए नियम लागू, अगर आपके घर या खेत में है बोरबेल तो जल्दी देखें
मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों और गांवों में नलकूप के उत्खनन के लिए गाइडलाइन जारी की गई हैं, जो मध्य प्रदेश के लोक स्वास्थ्य और यांत्रिकी विभाग द्वारा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देशानुसार हैं। अब मध्य प्रदेश के किसी भी शहर या गांव में नलकूप के उत्खनन से पहले उसका रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। इसके बाद, उसे शासन को रिपोर्ट देना होगा।
नलकूप के लिए ये नियम होंगे जारी
1 अगस्त को एक सुनवाई के दौरान, सरकार ने हाई कोर्ट को सूचित किया कि राज्य में खुले बोरवेल और उससे होने वाली आपदा के संबंध में एक नीति बनाने की प्रक्रिया में है। फिर, इस साल 24 जनवरी को, अतिरिक्त महाधिवक्ता ने सरकार की ओर से एचसी को सूचित किया कि मसौदा नीति तैयार है और वह इसे दो सप्ताह में जमा करेंगे।
एमपी में पंजीकृत एजेंसियां ही कर सकते हैं नलकूप खनन
मध्य प्रदेश में केवल पंजीकृत एजेंसियाँ ही नलकूप खनन कर सकती हैं। बच्चों के खुले बोरवेल में गिरने की घटनाओं के बढ़ते मामलों के बाद, प्रदेश सरकार ने सावधानी के कदम उठाए हैं। नया ऐप बोरवेल के लिए जारी किया गया है, जिसके माध्यम से एजेंसी या ठेकेदार का चयन होगा। रजिस्टर्ड निजी एजेंसियों में से ही चयन किया जाएगा। जब बोरवेल बंद होता है, तो इसे 50 सेमी x 50 सेमी x 60 सेमी के सीमेंट-कंक्रीट ब्लॉक से ढंकना होता है और फोटो भी अपलोड करना होता है। खुले बोरवेल के दिखने पर आम नागरिक ऐप या सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से शिकायत कर सकते हैं।
एमपी राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम ने तैयार किया मोबाइल एप
मध्य प्रदेश राज्य ने हाल ही में रीवा में हुई दुर्घटना के दौरान एक 6 साल के बच्चे की मौत हो गई थी जिससे सरकार इस मामले में बहुत गंभीरता दिखाते हुए नए प्रावधान तैयार करने जा रही है इसके संबंध में मध्यप्रदेश राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम एक मोबाइल ऐप तैयार किया है। इस ऐप के विकास में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस ऐप का उद्देश्य दुर्घटनाओं को निषेध करना है और इसे लॉन्च करने की तैयारी शुरू की गई है। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार जल्द ही किया जाएगा।
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सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में जारी किए थे निर्देश
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बोरवेल से होने वाली दुर्घटना को रोकने के लिए 6 अगस्त 2010 को नलकूप खनन के दौरान बच्चों की सुरक्षा के लिए आदेश जारी किया था, लेकिन फिर भी उसका सही क्रियान्वयन नहीं हुआ है। यह फैसला तत्कालीन चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन, और जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच द्वारा सुनाया गया था। लेकिन फिर भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर गंभीरता नहीं दिखाई गई।
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