कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद, लगभग 26,000 शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मचारी अब बेरोजगार हो सकते हैं, जो लोगों के बीच उनकी स्थिति पर संदेह का कारण बन रहे हैं। बहुत से लोग अब बैंकों से कर्ज ले रखे हैं, और उनकी सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगले महीने से उनके कर्ज की किस्त कैसे चुकाई जाए।
पांच से छह हजार व्यक्तियों की स्थिति गंभीर है, जिन्हें नियुक्ति पैनल की मियाद समाप्त हो गई है। अदालत ने इन्हें चार सप्ताह के भीतर अपना पूरा वेतन लौटाने का आदेश दिया है, जिसमें 12 फीसदी सालाना सूद भी शामिल है। ये शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाईस्कूल शिक्षकों को औसतन 22 लाख और हायर सेकेंडरी शिक्षकों को औसतन 28 से 30 लाख तक की राशि चुकानी पड़ सकती है।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ धरने पर बैठे शिक्षक
शिक्षकों के धरने में जुटे व्यक्तियों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। राज्य के स्कूल सेवा आयोग ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सोमवार को हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही मंगलवार की सुबह से राज्य के विभिन्न हिस्सों से आए शिक्षक कोलकाता के शहीद मीनार मैदान में धरने पर बैठे गए है।
धरने में शामिल शिक्षकों में से एक व्यक्ति ने कहा कि उन्होंने हाल ही में घर के लिए बैंक से कर्ज लिया था, और अब वो समझ नहीं पा रहे कि उसे कहां से चुकाएं। उन्हें लगता है कि एक अदालती फैसले ने उनके परिवार के भविष्य को अंधकारमय बना दिया है, और उन्हें आगे की राह नजर नहीं आ रही है।
करीब 26,000 शिक्षकों की नियुक्ति रद्द
कलकत्ता हाईकोर्ट ने करीब 26,000 शिक्षकों की नियुक्ति को रद्द करते हुए उन्हें वेतन के तौर पर मिले पैसों को साथ में सूद समेत चार सप्ताह के भीतर लौटाने का निर्देश दिया है। इन लोगों पर राज्य के बहुचर्चित शिक्षक भर्ती घोटाले के आरोप थे, और सीबीआई इस घोटाले की जांच कर रही है।
ममता बनर्जी और उनकी सरकार के लिए अदालत के फैसले को बड़ा झटका माना जा रहा है, जो लोकसभा चुनाव के बीच आया है। ममता बनर्जी ने इस फैसले को गैरकानूनी बताया है और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस मामले में तृणमूल कांग्रेस सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
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क्या है शिक्षक भर्ती का पूरा मामला
यह मामला स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) की ओर से नौंवी से बारहवीं तक शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती के लिए वर्ष 2016 में आयोजित परीक्षा से जुड़ा है। नतीजे नवंबर, 2017 में घोषित हुए थे। पहली मेरिट लिस्ट के बाद, संशोधन के बहाने दूसरी मेरिट लिस्ट जारी की गई, जिसमें पहली सूची के कई उम्मीदवारों का नाम गायब था, जबकि कुछ और उम्मीदवारों को कम नंबरों पर सूची में शामिल किया गया था।
इन उम्मीदवारों में तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री परेश अधिकारी की पुत्री अंकिता अधिकारी भी शामिल थीं। पहली लिस्ट में शीर्ष 20 उम्मीदवारों में एक महिला उम्मीदवार बबिता सरकार का नाम था, जो दूसरी सूची में प्रतीक्षा सूची में चली गई। हालांकि मंत्री की पुत्री अंकिता, बबिता से कम नंबर पाने के बावजूद, दूसरी लिस्ट में शीर्ष पर आ गईं।
बबिता ने इस मामले में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। लंबी सुनवाई के बाद, अदालत ने मंत्री की पुत्री को नौकरी से निकालने और उसे पूरा वेतन वापस लेने का आदेश दिया। इसके बजाय, बबिता को सरकारी नौकरी मिलने का निर्देश दिया गया। इस घटना के बाद, अन्य उम्मीदवार ने भी इस घोटाले के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी।
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